फिर भी प्रेम की लोच उसका दुखता हुआ रिसता हुआ शरीर इकट्ठा कर सकता था।
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फिर भी प्रेम की लोच उसका दुखता हुआ रिसता हुआ शरीर इकट्ठा कर सकता था।
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आज की दुनिया में चाहे वह जितना भी अलग क्यों न हो, अपने आप में एक आश्चर्य तो जरूर बोता है! मनुष्य का मन-एक दुखता हुआ मन के भीतर सँजोये गये सपने जब टूट कर पत्थर के मानिंद कठोर हो जाते हैं या मोम की भाँति गल-पिघल कर द्रवणशील हो जाते हैं, तब वेसे पुरूष-मन के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहता,